बिहार...
अपने शब्द ‘बिहार’ में ही पूरे बिहार को समाहित किए हुए हैं। निसंदेह बिहार का अतीत गौरवशाली है, परंतु इस पर चर्चा होनी चाहिए कि गौरवशाली इतिहास रखने वाला बिहार वर्तमान समय में किस गौरवशाली गर्त में गिरता जा रहा है। यहां की चरमराई व्यवस्था चीख-चीख कर चिल्ला रहीं है कि– ज़ालिमों ने मुझे लूटा और मेहरबानों ने मुझे संवारा। नादानों ने मुझे जंजीरें पहना दीं और मेरे चाहने वालों ने उन्हें काट फेंका।
जब-जब धर्म पर अधर्म हावी हुआ है तो धर्म की रक्षा के लिए मसीह का उदय होता है। बिहार की परिपेक्ष में भी कुछ ऐसा ही है। समय-समय पर मसीहा तो पैदा हुए हैं, परंतु अंततः वे अधर्म के ही हो चले। जेपी मूमेंट से निकले नेता लालू और नीतीश उदाहरण स्वरूप है। जिसके भी हाथ में बिहार की बागडोर गई, उसने अपने क्षमता से इसे भरपूर निचोड़ा।
अक्सर यह देखा गया है की बिहार की राजनीति केंद्र स्तर की राजनीतिक गतिविधियों को काफ़ी हद तक प्रभावित करती है। विगत लोकसभा चुनाव में सत्ताधारी गठबंधन एनडीए को बिहार से 39/40 सीटें मिली थी, लेकिन इस बार यह समीकरण बदलते हुए मालूम पड़ता है। उत्तरी बिहार में एनडीए की पकड़ बनी हुई है। कयास लगाए जा रहे है कि एनडीए बिहार के दक्षिणी भाग में कुछ सीटें गवां सकती है। इस बार भी एनडीए 40 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जिसमे 17सीटों पर BJP, 16सीटों पर JDU, 5सीटों पर चिराग पासवान की LGP और महज़ 1सीट पर HAM के उम्मीद्वार चुनावी मैदान में उतारे गए है। Dekoder के सर्वे का डाटा बताता है कि इस बार एनडीए को बिहार से 33 सीटें मिलने वाली है।
प्रथम चरण के चुनाव संपन्न हो गए हैं। इस स्थिति में बिहार में वोट प्रतिशत सबसे नीचे रहा है। बिहार में वोट प्रतिशत 47.74% रहा है जो अन्य राज्यों की तुलना में सबसे कम है। वोट प्रतिशत में कमी के कई कारण हो सकते हैं। लोगों में वोट के प्रति जागरूकता का अभाव, पलायन, सरकार से नाराज़गी, आदि। यदि ऐसा है तो NDA के लिए यह चिंता का विषय है।
दूसरी ओर INDIA विपक्ष की तैयारी भी सजग नजर आ रही है। बिहार में INDIA गठबंधन के तर्ज पर इस बार आरजेडी 26 सीटों पर चुनाव लड़ेगी जबकि कांग्रेस को 9 सीटें मिली हैं। वहीं वाम दल को पांच सीट मिली है। भाकपा माले को तीन सीट, सीपीआई को एक और सीपीएम को भी एक सीट दी गई है।
आगामी बिहार विधानसभा चुनाव–2025 के लिए यह लोकसभा चुनाव, विपक्ष के नज़रिए से काफ़ी महत्वपूर्ण हो जाता है। बिहार में विपक्ष के स्टार प्रचारक नेता तेजस्वी यादव अपने विरासत में मिली राजनीतिक धरोहर से अलग पहचान बनाते हुए लगातार जनता के बीच संवाद एवम् रैली के माध्यम से जुड़े हुए है। उनका चुनावी मुद्दा ‘रोजगार’ है। पिछले सरकार में अपने 17 महीने के कार्यकाल में उन्होंने अपने रोजगार के वादे को पूरा कर जनता का विश्वासमत हासिल किया है। यही कारण है कि उनकी रैलियों में उमड़ी भीड़ में अधिकांश वर्ग युवाओं का है। बिहार के युवाओं का तेजस्वी के प्रति झुकाव ज्यादा दिखाई पड़ता है। उनका मानना है कि निश्चित ही तेजस्वी यादव बिहार की राजनीति में योग्य नेता साबित होंगे।
बीते कई सालों में नागरिक ने अपने स्वयं नागरिक होने की परिभाषा को बदल दिया है। जिस तरह पिछले कई सालों में हिंदी परस्त क्षेत्र में राजनीतिक परिपेक्ष्य बदला है वह भयानक है आश्चर्यचकित भी करता हैं। रोटी-कपड़ा-मकान बुनियादी आवश्यकताओं के मुद्दे पीछे छूट गए हैं और राष्ट्रभक्ति मुख्य मुद्दा बन कर उभरा हैं।
परंतु बिहार की राजनीतिक आज भी बुनियादी ढांचे पर टिकी हुई है। राजनीतिक परिपेक्ष्य की दृष्टि से बिहार में शिक्षा-स्वास्थ्य-रोजगार , रोटी-कपड़ा-मकान को विस्थापित कर दिया है। सिर्फ इसका रूप बदला है स्वरूप आज भी वही है। यही कारण है कि पूरे भारत के हिंदी परस्त क्षेत्र जीत लेने के बाद भी BJP बिहार में आज तक पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने में नाकाम रही है।
बिहार के चुनावी आँकड़ें उलझाते हैं। आँकड़ें फुसलाते हैं। आँकड़े बहकाते हैं। तब भी इनसे मत घबराइये। सुनिए, समझिए और अपने सवाल पैदा कीजिए।
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